Thursday, 28 August 2008

"बिदेसिया" का रिमिक्स


जय हो संजय उपाध्याय जी ,आपने तो भिखारी ठाकुर की मशहूर कीर्ति "बिदेसिया '' को तो पुरा रिमिक्स ही बना दिया। हुआ की अचानक ही लूमर को पता चला की श्रीराम सेण्टर ,देल्ही में बिदिसिया नाटक हो रहा है। हम अपने मन को रोक नहीं सके और चल दिए नाटक को देखने।पर साहेब लोग , उपाध्याय जी ने तो कहानी का मूल सार तो रहने दिया ,बाकि गीतों के धून ,नाट्य प्रस्तुति ,..... हाय तोबा .... छी ...... । जबकि इस नाटक की यह ३९४ वीं प्रस्तुति थी।
पिछले वर्ष ही दिसम्बर माह में बोध गया ,बिहार में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय की प्रस्तुति "बिदेसिया'' देखी थी ।इस अन्तर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता का उद्याघटन महामहिम राट्रपति महोदयाने किया था। क्या प्रस्तुति थी उपाध्याय जी , क्या संगीत था...क्या अभिनय ,क्या लोक नृत्य का समायोजन। वाह,वाह कर रहा था दिल ,चारों ओर तालिया -ही-तालिया बज रही थी । बाद में पता चला की ये लोग आरा के कलाकार जो महाराजा कॉलेज ,आरा के छात्र -छात्राएं थे । मैं यह अच्छी तरह से जानता हूँ की संजय जी ,एन एस डीके पास आउट हैं .वे रंगमंच के बहुत बड़े पिलर हैं ,नाटक की दुनिया के बहुत बड़े नाम हैं। अगर उन्हें बुरा लगता है तो लगे , लेकिन सौ बात की एक बात कीश्री राम सेंटर में किए गया बिदिसिया नाटक भोजपुरी के शेक्सपिअर कहे जाने वाले स्व०भिखारी ठाकर की नहीं ... संजय उपाध्याय की है। श्री राम सेंटर के पूर्व निदेशक रहे संजय जी को कम से कम यवनिका ,आरा का बिदेसिया देखना होगा .इस नाटक की प्रस्तुति में तो लाखों का खर्च आया होगा,पर दर्शक की संख्या मुश्किल से ५०० होगी। मगर आरा में हजारो के खर्च से उम्दा "बिदेसिया " नाटक देखने को मिलता है जहाँ दर्शको की संख्या २००००-२५००० होती है। संजय जी मुंबई गए ,वहां भी बिदेसिया करेंगे,मगर हश्र रिमिक्स बिदिसिया ही होगा.भिखारी के नाम से जीने वाले लोगों को कम से कम ओरिजनल संगीत व् संवाद के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए.फिर भी लूमर की ढेर साडी शुभकामनायें संजय जी को ,आप लगातार नाटकों को करते रहें ............................. ।

Monday, 25 August 2008

लूमर चहका

आरा की ख़बर सुन चहक ही तो उठा लूमर। हुआ यूँ कि लूमरको दो दिनों कि छुटी मिली और चल दिया घर .कम से कम सातवर्षों के बाद घर आया था। घर के बच्चे जो हमसे जुड़े हुए थे वो कुछ अलग हटकर कर रहे थे। बड़े ही मशक्कत के बाद पुनः हमसे जुड़ पाय। कारण बड़ा ही अच्छा लगा ,भले ही पहले उदास सा हो गया था .बच्चो ने बताया कि यवनिका नामक संस्था पिछले पॉँच वर्षों से बाल महोत्सव कराती आ रही है जिसमें गाँवशहर के स्कूली छात्र-छात्राए जमकर भाग लेते हैं। इस आयोजन कि सबसे अच्छी बात यह लगी कि कैसे वहां के लोग इतने बड़े पैमाने पर भव्य आयोजन करा पा रहे हैं। संस्था जो कि एन जी औ भी नहीं ,जो लोग जुड़े हैं वो केवल इच्छा शक्ति के बल पर ही ऐसे कार्यक्रम करा रहे हैं जिसमे ६०००-७००० बच्चे इस सात दिनी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे है।
पत्रकार मन इसके अन्तः में जाने के लिए बेचैन कर रहा था कि अचानक ही इसके सचिव संजय शाश्वत मिल गए उन्होंने ही बताया कि यवनिका चालीस - पचास लोगों का एक परिवार है जो आरा को विश्व स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं । संस्था से जुड़े लोग भारत के अनेक कोने में रहते हैं। जो जहाँ है वो वहीं से आरा को विकसित करना चाहता है। नरसंहारों के लिए कुख्यात रहा सहार का एकवारी गाँव का बच्चा हिमांशु २००७ का चैम्पियन बना था जिसका सकारात्मक संदेश पुरे नक्सलग्रस्त इलाकों में गया । आज उन गाँवके बच्चों में जो उत्साह ,जज्बा देखने को मिला उसे मैं आपके बीच बाँट रहा हूँ।

Sunday, 24 August 2008

ओलम्पिक का खार क्रिकेट पर क्यों

आजकल लुमर लुमरई छोड़ने के चक्कर में ओलम्पिक पर ध्यान देने लगा है । खेळ में एक अरब आबादीवाला भारत का प्रदर्शन बहुत ही निराशा जनक पूर्ण रहता है। ओलम्पिक में एक गोल्ड सहित मात्र तीन मैडल लेना यह भारत के लिए कितना गर्व की बात है ,यह विचारणीय अवश्य है। फिर भी मेरे भारत को गोल्ड मिला इस पर मैं खुश जरुर हूँ। लेकिन अन्य खेलों में हमारे प्रदर्शन को लेकर क्रिकेट को ही जाने क्यों दोषी माना जाता रहा है। जबकि इस खेल में हमने दो बार विश्व कप पाया है। होकी के लिए हम क्वालीफाई नही कर पाये तो दोषी क्रिकेट,चाइना की तुलना में हम खेलो में कही नही है तो भी दोष क्रिकेट का ही है। काहे भाई। अरे हमारे ही देश का न कहावत है 'खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब'। तो भाई ख़राब कौन बनना चाहता है।अब इससे खेल का बुरा हो रहा है तो हमारा और हमारी सरकार का क्या दोष। हम सब तो अपनी परम्परा ही निभा रहे है। हम तो इतने पर ही मगन है की आई टी में तो आगे है। आज भारत का हर घर अपने होनहारों को खेल पर ध्यान देने से रोकता है । हा कुछ सिरफिरे अभी है जो खेल जैसी बेकार चीज को अपना तन मन धन सबकुछ दे रहे है । अरे वाही ...क्या तो नाम है भिवानी। वाही के बोक्सारों ने तहलका मचाया है न। पर बदले में नाम के आलावा उन्हें क्या मिल रहा। उसी दिन टीवी पर देखा किस कदर तंगहाली में कटती है उनकी जिन्दगी। अरे लुमर की भी आँखे भर आईं। तो भाई मेरे क्या जरूरत है ऐसे खेल को अपना kamसबकुछ देने का,जो दो वक्त की रोटी न दे सके। इससे तो अच्छा है न क्रिकेट । कम से कम इसके खिलाड़ियों को भूखे तो नहीं मरना पड़ता । भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने तो भारतीय खेल विकास परिषद् को पचास करोड़ देना की घोषणा कर अपने विरोधियों का तो मुहँ बंद ही कर दिया .वाह भाई ,पवार जी आगे क्या कोई गुल खिलाना है ........

Saturday, 23 August 2008

हम आपके साथ हैं

बाल महोत्सव एक याज्ञिक आयोजन है.जहा बच्चो का सर्वंगीण विकास के लगभग सभी आयाम मौजूद है.ये महोत्सव पूरे विश्व में अपनी तरह का अकेला है जहाँ एक साथ १२ इवेंट्स संपन्न होते है.इसने ग्रामीण और शहरी,आमिर और गरीब हर तरह के बच्चे को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है.जिसने गों में एक क्रांति ला दी है.जिसके आयोजक देश के विभिन्न कोने में रहते हुए भी अपना सहयोग करते है। हम आपके इस आयोजन में साथ हैं। तन -मन -धन जैसे भी हो यह आयोजन आरा के लिए परम्परा बनना ही चाहिए। सभी भोजपुर्वासियों को जो बाहर रह रहे हैं ,उन्हें आगे आना चाहिए।