Friday 30 January 2009

गाँधीजी का अपमान

राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि पर गया,बिहार के आयुक्त राम्मैया तथा जिलाधिकारी संजय सिंह ने श्रधांजलि देते वक्त उनका अपमान किया । गया स्थित गाँधी स्मारक पर माल्यार्पण करते वक्त अपना जूता उतरना भी लाज़मी नहीं समझा और जूता पहनकर ही गांधीजी को अपनी श्रन्धांजलि देकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। यह अधिकारिओयों द्वारा राष्ट्र का अपमान है ।
कहा जाता है की नीतिश सरकार में बयूरोक्रेटेसकुछ ज्यादा हीआकाश में उड़ रहे हैं ,इन्हे यह भी इल्म नहीं है की जिस व्यक्ति ने देश को आजाद करने में अपने आप को न्यौछावर कर दिया उसके प्रति उनकी क्या ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ........?

Wednesday 28 January 2009

हिटलर की कुर्सी खतरे में

हिटलर को बड़ी मुश्किल से आराम ही मिला था की उनकी कुर्सी हिलती नज़र आई।लुमरको जब इस बात की जानकारी हुई की हिटलर आजकल परेशां हैं तो भला लुमर को नींद कैसे आती.जब बात की तह में गया तो मालूम हुआ की ३६५ दिन न्यूज़ चैनेल के सीईओ अमल जैन उनकी हिटलरशाही की कुर्सी पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं। मैंने हिटलर साब से कहा की अब रेतिरेमेन्ट ले लीजिये .अब बुडे भी हो gaye हैं और आपका उतराधिकारी भी काफी टैलेंटेड है .पिछला दो साल का उसका कार्य काफी सराहनिये रहा है।मैनें देखा की हिटलर साब कोई डिसीजन लेने में हिचक रहे हैं तो फ़िर मुझे लगा की अभी इन्हे मैं समझा नहीं पाया हूँ। पिछले दो-ढाई साल में अमल ने लगभग सौ लोगों को अपने यहाँ से हटाया ही नहीं बल्कि उनका सेलरी का पैसा भी रख लिया है। न्यूज़ एडिटर एचआर हेड को ग़लत केस में फंसकर जेल भी भेजवाया। पटना ब्यूरो हेड को भी डिस्टर्ब किया। कोई उसके इच्छ के बिना पेशाब भी नहीं करने जा सकता ।उस सी ई ओ के ऊपर लगभग चौदह क्रिमनल केस है.अभी - अभी दो - चार दिन पहले उसके आतंक से तंग आकर आठलोगो ने ३६५ दिन छोड़ दिया जिसमे न्यूज़ एडिटर कमलेश सिंह,न्यूज़ एंकर विशाल आज़म ,प्रोड्यूसर स्वयाम्बरा , रिपोर्टर प्रशांत अस्सिस्टेंट प्रोड्यूसर मानस आदि हैं। ये सारे लोग चैनेल के नींव से ही जुड़े हुए थे जो अमल जी के शोषण को लगातार झेल रहे थे । -----तो सरकार हिटलर जी अब आपकी कुर्सी चली ही जायगी ,होशियारी इसी में है की आप स्वयं ही अपनी कुर्सी सौंप दे।

कहानी महान गणितज्ञ डाक्टर वशिष्ठ की -साभार आईना,बाल पत्रिका की

बिहार के आरा जिला का छोटा सा गाँवबसंतपुर। यह कोई मामूली गाँव नहीं बल्कि गाँव में १७ अक्तूबर १९४७ को इक जिनिओउस ने जन्म लिया ,उस जिनिउस का नाम वशिष्ठ नारायण सिंह है। कहते हैं इस गणितज्ञ के दिमाग का लोहा पूरा विश्व मानता था। पर सिज्रोफिनिया नमक मानसिक बीमारी के कारन ये शख्स जीवन के सूत्रों में उलझकर रह गया।


प्रारम्भिक जीवन


वशिष्ठ नारायण बचपन सही प्रतिभाशाली थे।इन्होने नेतरहाट स्कूल से पढाई की और १९६३ की हायर सेकोन्दारी परीक्षा में बिहार टौपर बने। आगे की पढ़ाई के लिए साइंस कालेज ,पटना में दाखिला लिया। ये घटना है बी स सि की प्रथम वर्ष की। गणित के विख्यात प्रोफेसर डी नाथ अपना क्लास ले रहे थे,उस समय वशिष्ठ ने एक मैथ को सैट तरीके से बनाकर सबको अच्चम्भित कर दिया .वशिष्ठ की प्रतिभा के कारन कालेज के प्रिंसपल डा नागेन्द्र नाथ उन्हें अपने बेटे की तरह मानने लगे।इसी समय कैलिफोर्निया के विद्वान विज्ञानी डा केलि का साइंस कालेज में आगमन हुआ। डा नाथ ने वशिष्ठ का परिचय डा केली से कराया, मिलकर केलि अच्चम्भित रह गए। उन्होनें वशिष्ठ को शोध के लिए अमेरिका बुलाया। तब वशिष्ठ स्नातक भी नहीं किए थे .इसके लिए एक परीक्षा समिति का गठन किया गया,जहाँ तिन साल के कोर्स को वशिष्ठ ने एक साल में पूरा किया। १९६५ में वे अमेरिका के लिए उड़ान भाड़े ।


----तो दोस्तों सिपाही का बेटा अमेरिका जा पहुँचा ----------------क्रमशः