आरा की ख़बर सुन चहक ही तो उठा लूमर। हुआ यूँ कि लूमरको दो दिनों कि छुटी मिली और चल दिया घर .कम से कम सातवर्षों के बाद घर आया था। घर के बच्चे जो हमसे जुड़े हुए थे वो कुछ अलग हटकर कर रहे थे। बड़े ही मशक्कत के बाद पुनः हमसे जुड़ पाय। कारण बड़ा ही अच्छा लगा ,भले ही पहले उदास सा हो गया था .बच्चो ने बताया कि यवनिका नामक संस्था पिछले पॉँच वर्षों से बाल महोत्सव कराती आ रही है जिसमें गाँवशहर के स्कूली छात्र-छात्राए जमकर भाग लेते हैं। इस आयोजन कि सबसे अच्छी बात यह लगी कि कैसे वहां के लोग इतने बड़े पैमाने पर भव्य आयोजन करा पा रहे हैं। संस्था जो कि एन जी औ भी नहीं ,जो लोग जुड़े हैं वो केवल इच्छा शक्ति के बल पर ही ऐसे कार्यक्रम करा रहे हैं जिसमे ६०००-७००० बच्चे इस सात दिनी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे है।
पत्रकार मन इसके अन्तः में जाने के लिए बेचैन कर रहा था कि अचानक ही इसके सचिव संजय शाश्वत मिल गए उन्होंने ही बताया कि यवनिका चालीस - पचास लोगों का एक परिवार है जो आरा को विश्व स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं । संस्था से जुड़े लोग भारत के अनेक कोने में रहते हैं। जो जहाँ है वो वहीं से आरा को विकसित करना चाहता है। नरसंहारों के लिए कुख्यात रहा सहार का एकवारी गाँव का बच्चा हिमांशु २००७ का चैम्पियन बना था जिसका सकारात्मक संदेश पुरे नक्सलग्रस्त इलाकों में गया । आज उन गाँवके बच्चों में जो उत्साह ,जज्बा देखने को मिला उसे मैं आपके बीच बाँट रहा हूँ।
Monday, 25 August 2008
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1 comment:
lagta hain aap aara ke rahne wale hain. achchha hain aage to aana hi chahiye bhojpur ke unlogon ko jo mukam pr pahuch gaye hain ......
jankari ke liye thanks.
lage rahen.....
comment ke liye dhanyabad...
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