बहुत ही अच्छा लगा की कोई तो है जो बच्चों के बारे में सोचता है । हम माता-पिता, अभिभावक हमेशा ही अपनी बात,विचार ,सपने बच्चों पर लड़ते रहें है.पर आईना जैसी पत्रिका ने हम सब से अलग बच्चों के बारे में सोच,सोचा ही नहीं बल्कि बाज़ार में ला भी दिया। वाह क्या खूब भाई--- बहुत बधाई।
अब हमें अपने बच्चों को इस पत्रिका में लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए,बल्कि अपने आस-पास के बच्चों को भी आगे लाना चाहिए। हम आपके साथ हैं.मात्र १२/- रू में साल में मात्र ४०/- । बहुत ही कम पर बहुत महँ काम। स्कूल को भी आगे आने की जरुरत है।
आरा जैसा छोटा शहर आज पुरे भारत को आईना के मध्यम से आकर्षित किया है तारीफ के काबिल है। मैं चुकी आरा को भली -भांति जानता हूँ की वहां कोई इंडस्ट्रीज नहीं है .हमेशा ही मालेरणवीर की खुनी जंग का क्षेत्र रहा है ,ऐसे में अगर वहां से बाल पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है तो पूरेबिहार ही नहीं समस्त भारत को आगे आना चाहिए .
No comments:
Post a Comment