लुमर अब भोंकना चाहता है.इंसानों की जाति से निकलकर वो कुता बन इस बदलती दुनिया को जानना चाहता है.कुता और इन्सान के बीचकी दूरी के कारणों के अवयवों से वाकिफ होकर इस दुनिया को खासकर हमें चाहने वालों को वफादारी दिखाना चाहता है की कैसे आप कुता को मारते रहते हो, दुत्कारते रहते हो ,बावजूद इसके वो आपके दरपर पड़ा रहना ही आपणा कर्तव्य समझता रहता है।
आप लोग तो कुता से अच्छ तरह से वाकिफ होंगे ही ,आप किसी भी कुते को एक-दो रोज सरी हुई रोटी के टुकड़े को डाल दो ,फ़िर देखो आप ,वो कुता आपका कितना वफादार हो जाता है। आप लाख उसे मारो-पीटो,मगर वो हमेशा ही आपका भला ही चाहेगा।
इधर मेरे ख्याल में अपने अन्नदाता के खिलाफ तरह-तरह के ख्याल उबल रहे हैं ,मेरे अन्दर का एक छोटा इन्सान मुझे बार-बार कुता बनने के लिए प्रेरित कर रहा है की जाओ जाकर उस कुत्ते से नमकहलाली का पाठ सीखो.......और फ़िर क्या था मैंने अपनी आत्मा से बहुत सारे सवाल जवाब किए और बन गया कुत्ता । सही मायने में कुत्ता ,वो कुत्ता जो सिर्फ़ वफादारी ही करेगा,जो बातें अच्छी नही लगेगी उसपर केवल भोंकेगा ..भों ...भों...भों...भों...भों..भों... अन्नदाता भी उसकी विरोध की प्रक्रिया को नहीं समझ सकते ,क्योंकि समझने के लिए भावनाएं होनी चाहिए और जिनके पास भावनाएं होंगी वो इन्सान के रूप में ज्यादा दिनों तक अपनी इंसानियत को नहीं बचा सकता।
..............लुमर को अपनी इंसानियत से बहुत प्यार है......... भले ही उसे दोहरी ज़िन्दगी अर्थात कुते की ज़िन्दगी जीना पड़े .कम से कम वो ग़लत बातों के खिलाफ आवाज़ तो ज़रूर उठाएगा । तो ॥आदरनिये पाठक गण ,अब आप लुमर शाहाबादी से तो नहीं ,किंतु आप लुमर भों-भों से अवश्य बात करेंगे.निशिचित तौर पर दुनिया की हर सचाई से लुमर भों-भों आपको वाकिफ कराएगा । कहा गया है की खग जाने खग ही की भाषा-- अर्थात लुमर की बात को समझाने केलिए आपको भी भों-भों करना ही होगा।
चलते-चलते सोमनाथ साहब ने सांसदों के लिए बिल्कुल सही भों-भों किया था,किंतु बाद में वो फ़िर सच्चाई पर परदा डाल दिए .खुशी इस बात की ज़रूर हुई की कुछ तो लोग है ही जो भों-भों करना चाहते हैं भले ही कुछ पल के लिए ही सही।
Friday, 20 February 2009
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2 comments:
shaheb bina kutta bane kaam nahi chal sakega...? .............
आपके साथ हूँ। समर्थन करती हूँ। भों भों
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